Tuesday, December 10, 2013

अपनें अफसाने भी थे कभी !!

किसी को डुब के चाहा, पर उसे मन्जुर ना था ये !
मेरी किस्मत अधुरी थी , मेरी दुनिया ना पुरी थी !
किसी के सपने देखे थे , मेरे बातो मे रहती थी !
अजब सी जिन्दगी है अब , कभी यादो मे बसती थी !
मनाया बोलके उसको , समझती ही नही मुझको !
मन्न्ते मान्ग ली मैने , बडी मजबूर लगती थी !

किसी को डुब के चाहा , पर उसे मन्जुर ना था ये !

हजारो उलझने तोडी , बहोत समझाया भी उसको !
अपनी थी     शायद , मना भी साफ करती थी !
ख्याल था उसको मेरा ,  विश्वास करती थी !
मेरी हर बात मे , मुझको बिल्कुल  समझती थी !
प्यार वो भी करती थी , मुझे विश्वास पुरा था !
जान कर अनजान थी शायद , मुझे इन्कार करती थी !

किसी को डुब के चाहा , पर उसे मन्जुर ना था ये !

अभी भी याद करता हु , भुला मै नही उसको !
बडी मासूम सी है वो , बहोत प्यारी सी लगती है !
मेरी आखो मे देखो तो , दिखेगी खुबसूरत वो !
पर ना जाने क्यु , मेरे दिल मे ही रहती है !
अब बहोत ही दुर हु उससे , फिर भी साथ है मेरे !
मै नही हसता , पर वो मेरी अहसासो मे हसती है !
मेरी हालत को वो देखती मजबूर सी ,
तरस खाती मुझपे , फिर जोर से हसती है !

किसी को डुब के चाहा , पर उसे मन्जुर ना था ये !



आज बस इतना ही , कुछ और नहीं कहुंगा !

Monday, October 7, 2013


वो छोटी लडकी-4

परन्तु वो छोटी लडकी , वो.........वहाँ छत पर नहीं थी ! मै घन्टो इन्त्जार करता रहा उसका , पर उसे नहीं आना था ,और वो नहीं आई ! मैने व्याकुल होकर माँ

से पुछा उस लडकी के बारे में ! माँ ने बताया की " वो छोटी लडकी अपने बुआ के घर चली गई है ! उसके बुआ कि तबियत ठिक नहीं रहती है और उन्हे घर के

काम करने मे परेशानी होती है ! वो छोटी लडकी अब वहीं रहेगी और अब तो वो बेचारी विद्यालय भी नहीं जाती ! "
पता नहीं क्युं मुझे अचानक बहुत गुस्सा आने लगा और मै अपने आपको बहुत असहाय महसुस करने लगा !

क्या समाज इस २१वीं सदी मे भी उन पुरानी दकियानुसी बुराईयों से बाहर नहीं निकल पाया है ?
क्या लोग अब भी लडकी को समाज का बोझ और एक घरेलु औरत समझते हैं जो बस घर के अन्दर हि
ठीक है ? क्या समाज अब भी लडकियों के महत्वाकांक्षा और आत्म्विश्वास से डरता हैं ! फिर मै सोचता हुँ क्या वाकई भारत तरक्की कर रहा है ????

ये घटना मुझे जीवनपर्यन्त याद रहेगी ! कुछ घटनायें होती है मनु्ष्य के जीवन मे जो उसे याद रहती है और उसे एहसास दिलातीं कि कितनी कमियाँ है अभी हमारे जीवन रुपी बगिया मे जिसे अभी हमे प्रारम्भ से सिंचना हैं वो छोटी लडकी मुझे मेरे अन्दर कि किसी कमी कि याद दिलाती रहेगी हमेशा ही ! ये कमी दुर होगी , जरुर दुर होगी और शायद मै कुछ कर सकु अपने उस अन्दर कि कमी को दुर करनी के लिये !!

अभी के लिये विदा लेता हुँ , फिर मिलेगें अपनी नई भावनाओं के साथ, अपने नये शब्दो के साथ और नई उम्मीदों के साथ !!

Tuesday, October 1, 2013

 
वो छोटी लडकी-3

तब माँ से उस लडकी के बारे मे पता चला ! उसके पिता पेशे से धोबी थे और शायद विधाता भी यही चाहते थे उसके पिता से ! शायद इसलिये असमय ही उसके पिता के दोनो पैर छिन लिये ! उसकी माँ एक घरेलु महिला थी , जो पति के कामों मे हाथ बटातीं थी ! पाँच बहनों मे सबसे बडी थी वो और कोई भाई न था उसका ! माँ ने बताया की वो सरकारी विद्यालय मे जाती है और घर आते ही अपने माँ बाप के कामों मे हाथ बटाती थी !
जब तक मैने वहाँ अपनी छुट्टीयाँ व्यतीत की, उसे रोज उसी छत पर खेलता हुआ देखता रहता ! कभी वो अकेले ही छत पर इधर से उधर दौडती रहती तो कभी बहनों के साथ खेलती रहती ! हमारे प्रान्गण मे बन्धे गाय को तो रोटी खिलाना वो कभी नहीं भुलती थी ! नित्य अपने माँ के हाथों मार खाना और फिर सब भुला कर अपने खेल मे मगन हो जाना उसकी आदतों मे शामील था शायद ! और ऐसे हि मेरी छुट्टियाँ कब समाप्त हो गयी , मुझे पता ही नहीं चला !
समय ने बडी तेजी से करवट बदली ! मै एक साल बाद फिर छुट्टियाँ बिताने घर आ गया ! परन्तु वो छोटी लडकी , वो.........वहाँ छत पर नहीं थी !

फिर मिलतें है अपने अगले और अंतीम भाग के साथ..........!!

Tuesday, September 24, 2013


वो छोटी लडकी-2

अपनी माँ को सामने देख एक बार तो वो हक्की बक्की हुई , और फिर रोने लगी ! पल भर के लिये चुप हुई उसकी छोटी बहन भी रोने लगी ! उसकी माँ अभी भी चिल्लाये जा रही थी " सारे कपडें बिखेर दियें हैं ! काम तो कुछ करती नहीं ,और बस काम बढाये रहती है ! अबकी बार आने दे तेरी बुआ को तुझे भी भेज दुगीं उनके साथ ही ! पुरे छत पर धमाचौकडी मचा रखी है इस लडकी ने ! "
और ना जाने क्या क्या बड्बडाते हुए उसकी माँ ने सारे कपडों को इक्कठा किया और वापस निचे लौट गयी ! माँ के निचे जाते ही वो छोटी लडकी एकदम से चुप हो गयी और अपनी छोटी बहन को देखा ,जो छत पर बिखरे ककंडो के साथ ना जाने किस दुनिया मे मगशूल थी ! वो छोटी लडकी उठी और कोई लोकगीत गाते हुए छत पर इधर से उधर कुदने लगी , शायद वो नाच रही थी ! तभी माँ की आवाज ने मेरा ध्यान भग़ं किया " खाना लगा दिया है , अब निचे आ जाओ और खाना खालो , जल्दी आ जाओ बेटा ! "
मैने माँ को आने को कह एक बार फिर उस छोटी लडकी को देखा जो सामने के तालाब को एकटक देखे जा रही थी ! फिर मै वापस निचे आ गया खाना खाने !
भोजन कर लेने के पश्चात भी मै उसी लडकी के ख्यालो मे ही डुबा रहा !
उम्र तकरीबन साल की होगी ! बाल बिखराये हुए , मैले और कहीं कहीं फटे हुए कपडें पहने और अपनी छोटी बहन को अपने गोद मे लिये वो मेरी ओर ऐसे देख रही है जैसे कुछ कहना चाहती है ! फिर से माँ ने ही मुझे मेरे ख्यालो से वापस लाया : " कहाँ खोये हुए हो सुबह से ? कोइ बात है क्या ? "
मैने हसते हुए माँ से कहा : " नहीं रे, ऐसी कोइ बात नहीं है ! अच्छा माँ , इक बात बताना , ये जो सामने वाले घर मे जो लोग रहतें है , क्या करतें हैं ! "
तब माँ से उस लडकी के बारे मे पता चला !

ये लडकी मुझे अपने परिवार का एक हिस्सा सा लगने लगी थी , उसके बारे मे तो अभी और भी लिखना  चाहता हुँ , पर कुछ बाद के लिये भी शेष रखता हुँ ! फिर मिलतें हैं आगे कि कहानी के साथ ,जल्दी ही .......!!!!



Tuesday, September 17, 2013



वो छोटी लडकी


जाडे के दिनों मे छतों पर बैठ कर धूप सेंकना कितना सुखद होता है ना !! सामनें तालाब मे कलरव करते पन्दुब्बी पक्षियों को देखते देखते न जाने कितना समय व्य्तीत हो गया , पता ही नहीं चला की तभी अचानक सामने वाले छत पर एक छोटी सी लडकी कुछ कपडे लिये हुये अपने छत पर आयी और कपडों को बगल मे पडे बांस की लकडी पर रखा ! उसके पिछे उसकी छोटी बहन भी थी जिसे उसने अपने गोद मे उठाया और दुर बैठे एक बन्दर को दिखाने लगी !
मै बस एकटक उसे और उसके बालपन को निहारता रहा तभी वो छोटी लडकी भय से चिखने लगी और अपनी माँ को बुलाने लगी ! गोद मे उसकी छोटी बहन
भी रोने लगी ! माजरा मुझे तब समझ मे आया जब मैने देखा की एक बन्दर उसके छत पर कुद आया है और उसे डरा रहा है ! छोटी लडकी सि्ढीयों की ओर भागी और बन्दर उसके पिछे ! पर वो बेचारी उन्ही बांस कि लकडियों मे उलझ कर गिर पडी जिस पर उसने कपडे रखें थे ! बासों के गिरने का शोर सुन कर वो बन्दर भाग गया था ! और वो छोटी लडकी अपनी रोतीं हुइ छोटी बहन को चुप कराने लगी की तभी एक जोरदार थप्पड पडा उसके गालों पर !!...........


कहानी अभी खत्म नहीं हुइ हैं !.....पर आगे का शेष रहेगा !अगली बार लिखेंगे आगे का.....फिर मिलते हैं आगे की कहानी के साथ .......

Thursday, September 12, 2013


अपने उलझनों या युं कहिये की अपने डर की वजह से कभी कुछ कह नहीं पाया ! अभी भी इतनी हिम्मत नहीं की उसका नाम ले सकुं......!! पर यहीं सारी बातें या यादें  हैं , जो हमे जिन्दा रखती हैं  और वापस ले जातीं है मुझे अपने भूत (past) में और मेरी मानिये तो असली आनन्द याद करने में ही है .......

कुछ खुद पे ना था यकीं ,ना उसने ही ऐतबार किया !
क्या बताते हाले दिल उसे ,की कैसे मैंने प्यार किया !!
कुछ उम्मीद जगा ली थी मैंने , कुछ शब्दों का भी जाल बुना,
पर दिल की बात रही दिल में ही ,
कितना कुछ करके के भी ना इजहार किया  !!
शायद कुछ कहना चाहा था उसने ,
पर मै था बुध्हू , फिर भी ना इकरार क्या !!
शायद थी वो  किसी और की , पर मुझको ना इंकार किया !!

चलिये अभी तो जाता हुं , फिर मिलता हुं....

Tuesday, September 10, 2013


पहला नशा, पहला खुमार......!!!

कुछ बातों में मै अव्वल था , कुछ वो भी हमें बताती थी !
राहें बिल्कुल जुदा थी अपनी ,पर साथ सदा ही आती थी !
जब पहली बार मिला था उससे , वो थोड़ी सी शर्माई थी ! 
दिल में कुछ कुछ हुआ था मेरे , जब पास मेरे वो आई थी ! 
कॉलेज का पहला दिन था यारो,जब मैंने उसको देखा था ! 
आँखों में ही बाते हुई थी  , पलके मैंने झपकाई थी ! 
सब कुछ बिल्कुल नया नया था,मन में बड़ा घबराया था !
उसकी मैंने क़द्र नहीं  की   ,  तब मैंने जो भी पाया था ! 
जब भी मै उससे बाते करता , धड़कन युही बढ़ जाती थी ! 
छिप छिप कर देखा करता था,पर सपनो में क्यों आती थी ! 
दुनिया से तब मै ऊपर था ,खुशियों के दिए जलाये थे ! 
मुझसे ही बाते करती थी , दिल की हर बात बताती थी ! 
उसकी हरेक अदा का क्या , गुडिया जैसी लगती थी ! 
उसके वो मासूम से नखरे , बच्चो के जैसे करती थी !




ये अभी अधुरा ही है , परन्तु मुझे अब इसे पु्रा भी नहीं करना,क्युकीं जब मैने इसे लिखा था , तो अधुरा हि छोड़ दिया , और अब मुझे इसे पुरा करने का मन भी नहीं होता ,क्युकीं.....

 "कभी फुर्सत में प्यार किया था हमने , 

गौर फर्माइएगा.......  
     
कभी फुर्सत में प्यार किया था हमने ,        
और खुद को तैयार किया था हमने ,        
पर बडे ही खुद्गर्ज निकले हम तो,         
भुल हि गये हम की........,        
किसी से इकरार किया था हमने !!"

अब शब्दो में ही जिन्दगी ढुढ़ंता हुं.....बहुत कुछ है कहने को......और कहेगें भी , पर फिर कभी.......चलते हैं !!



Monday, September 9, 2013

घर से दुर

 तल्लिन्अता से बैठा हुं घर मे चुपचाप मैं,
 आज अचानक क्या हुआ है खो गया हुं आप मे,
 बैठे बैठे मन मे मेरे घर कि याद आ रही है,
 जिसके लिये आया यहाँ पर वहीं नहीं अब भा रही है,
 मन है होता चन्चल बङा, टिकता नहीं यहाँ पर, 
 जा पहुचता है दुर कहीं बचपन बिताया जहाँ पर,
 बचपन की यादों मे खो सा जाता हुं मै,
 इस अकेलेपन पर खुद ही झल्लाता हुं मैं, 
 क्या हसीन दिन थे वो, जब याद उनकी आती है,
 दिल तो रोता ही है, आँख भी भर आती है, 
 माँ का मुस्कुरता चेहरा, आँखो पे छा जाता है,  
 याद उनकी आती है जब, मन भी घबराता है,
 कितना अकेला हो गया हुं, एक बार देखो ना माँ,  
 याद जितना ज्यादा आती ,दिल को उतना रुलाती,
 कैसा हुं मैं यहाँ पर, एक बार देखो ना माँ !!