घर से दुर
तल्लिन्अता से बैठा हुं घर मे चुपचाप मैं,
आज अचानक क्या हुआ है खो गया हुं आप मे,
बैठे बैठे मन मे मेरे घर कि याद आ रही है,
जिसके लिये आया यहाँ पर वहीं नहीं अब भा रही है,
मन है होता चन्चल बङा, टिकता नहीं यहाँ पर,
जा पहुचता है दुर कहीं बचपन बिताया जहाँ पर,
बचपन की यादों मे खो सा जाता हुं मै,
इस अकेलेपन पर खुद ही झल्लाता हुं मैं,
क्या हसीन दिन थे वो, जब याद उनकी आती है,
दिल तो रोता ही है, आँख भी भर आती है,
माँ का मुस्कुरता चेहरा, आँखो पे छा जाता है,
याद उनकी आती है जब, मन भी घबराता है,
कितना अकेला हो गया हुं, एक बार देखो ना माँ,
याद जितना ज्यादा आती ,दिल को उतना रुलाती,
कैसा हुं मैं यहाँ पर, एक बार देखो ना माँ !!
Very touching.. there's magic in your words.. I'm amazed.. keep on
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