Thursday, September 12, 2013


अपने उलझनों या युं कहिये की अपने डर की वजह से कभी कुछ कह नहीं पाया ! अभी भी इतनी हिम्मत नहीं की उसका नाम ले सकुं......!! पर यहीं सारी बातें या यादें  हैं , जो हमे जिन्दा रखती हैं  और वापस ले जातीं है मुझे अपने भूत (past) में और मेरी मानिये तो असली आनन्द याद करने में ही है .......

कुछ खुद पे ना था यकीं ,ना उसने ही ऐतबार किया !
क्या बताते हाले दिल उसे ,की कैसे मैंने प्यार किया !!
कुछ उम्मीद जगा ली थी मैंने , कुछ शब्दों का भी जाल बुना,
पर दिल की बात रही दिल में ही ,
कितना कुछ करके के भी ना इजहार किया  !!
शायद कुछ कहना चाहा था उसने ,
पर मै था बुध्हू , फिर भी ना इकरार क्या !!
शायद थी वो  किसी और की , पर मुझको ना इंकार किया !!

चलिये अभी तो जाता हुं , फिर मिलता हुं....

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