Wednesday, April 2, 2014

काटों से खेलना जानता तो

काटों से खेलना जानता तो , युं कली ही नहीं रहता,
फुल बनकर मुस्कुराता !!
कौन हुं मै , क्या है मतलब ,दौड कर रफ्तार पाता ,
खुद से बेगाना हुं मै , पर भीड मे मै दौड जाता !!
भीड मे मै खो गया हुं , अपनी पहचान ढुंढता हुं ,
उचीं उचीं दुर कहीं खाईयों मे , अकेले ही ग़ुजंता हुं !!
काटों से खेलना जानता तो , युं कली ही नहीं रहता,
फुल बनकर मुस्कुराता !!

अपनो से दुर जाकर , जीत की मुस्कान होती ,
दिन मे बेचैन रहता , रात्री ना साथ सोती !
खुद मे मै व्यस्त रहता , रिश्तो कि साख खोती !!
भेडों के इस झुन्ड मे दौडता हि जा रहा हुं !
कुछ उम्मीदें हैं मेरी , कुछ मै भी पाना चाहता हुं
पर जब देखता हुं चारो ओर , फिर मै सोचता हुं 
उम्मीदों कि है उम्र ही क्या ,
उम्मीदों कि है उम्र ही क्या !
रुको ऐ दुनि्या वालों , साथ मै भी आ रहा हुं !!
काटों से खेलना जानता तो , युं कली ही नहीं रहता,
फुल बनकर मुस्कुराता !!


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