Friday, May 30, 2014

Wednesday, April 2, 2014

काटों से खेलना जानता तो

काटों से खेलना जानता तो , युं कली ही नहीं रहता,
फुल बनकर मुस्कुराता !!
कौन हुं मै , क्या है मतलब ,दौड कर रफ्तार पाता ,
खुद से बेगाना हुं मै , पर भीड मे मै दौड जाता !!
भीड मे मै खो गया हुं , अपनी पहचान ढुंढता हुं ,
उचीं उचीं दुर कहीं खाईयों मे , अकेले ही ग़ुजंता हुं !!
काटों से खेलना जानता तो , युं कली ही नहीं रहता,
फुल बनकर मुस्कुराता !!

अपनो से दुर जाकर , जीत की मुस्कान होती ,
दिन मे बेचैन रहता , रात्री ना साथ सोती !
खुद मे मै व्यस्त रहता , रिश्तो कि साख खोती !!
भेडों के इस झुन्ड मे दौडता हि जा रहा हुं !
कुछ उम्मीदें हैं मेरी , कुछ मै भी पाना चाहता हुं
पर जब देखता हुं चारो ओर , फिर मै सोचता हुं 
उम्मीदों कि है उम्र ही क्या ,
उम्मीदों कि है उम्र ही क्या !
रुको ऐ दुनि्या वालों , साथ मै भी आ रहा हुं !!
काटों से खेलना जानता तो , युं कली ही नहीं रहता,
फुल बनकर मुस्कुराता !!


Thursday, February 13, 2014

आज शायद फिर से दिल के किसी कोने मे हलचल हुई ! तो लिख हि लेता हुं ! मे्रा मानना है कि अगर दिल मे कोइ ठेस है तो या तो उसे किसी से बता देना चहिये या कही लिख
देना चाहिये , इससे दिल हल्का हो जाता है और इससे समस्या का समाधान भी निकल आता है !
जब इस दुनि्या मे हुम खुद को अकेला और कमजोर समझने लगते है , तो वो हमारे पतन का मार्ग है ! और ऐसे समय मे कोइ दुसरा हमारी मदद नही कर सकता !
अपनी मदद हमे खुद हि करनी है ,हमारा हौसला हि हमारा मार्गदर्शन करेगा ! हुमे खुद पे पु्रा विश्वास और यकीन होना चाहिये !
शायद कुछ ज्यादा हो गया , पर जो भी है यही सत्य है और इस विचार करना आपका भी काम है !  सोचते  रहिये!

 मै अकेला 

सैकड़ो की भीड़ मे , फिर अकेला चल दिया !!
राहें अनजान मुझसे , फिर अकेला चल दिया !!

कहने को अपने थे सारे , साथ रहा करते थे !
सबसे प्यारे दोस्त हो तुम , ये भी कहा करते थे !
एक छोटी आन्धी आई , मै अडीग खड़ा रहा !
सपनों की दुनिया में , मै युहीं जड़ा रहा !
सपनों से गिरा जब मै , वो भी मुझपे हसते थे !
नींव जिसकी गहरी समझी , तास के वो पत्ते थे !
राह में पत्थर थे इतने , फिर क्युं फिसल गया !!

सैकड़ो की भीड़ मे , फिर अकेला चल दिया !!
राहें अनजान मुझसे , फिर अकेला चल दिया !!

जिन्दगी के सफर मे ,  बिन मेघ बरसात थी !
प्यार से जो घर बनाया , वो अब बर्बाद थी !
नया था मौसम मगर ,  दुनिया अब भी वही थी !
लोग सारे भी वही थे , ईन्सानियत अब भी नहीं थी !
मेरी दुनिया भी वही थी , पर मै नहीं अब वो रहा !
बनती चिजे नष्ट होती , ये समय रुकता हैं कहाँ !
मै भी इन्सान हुं , आगे बढना जानता हुं !
सुनता अब भी हुं उनको , पर अब नहीं वो मानता हुं !
समय भी क्या चीज है , ज्ञ्यान हमको मिल गया !!

सैकड़ो की भीड़ मे , फिर अकेला चल दिया !!
राहें अनजान मुझसे , फिर अकेला चल दिया !!

इसी के साथ विदा लेता हु , मिलुंगा फिर यही पर , किसी नये उम्मीद और नये सोच के साथ !!