जलेबी -1
हैदराबाद की वो शाम आज भी मुझे याद है !कुछ यादें, समय के इस बडे तुफान मे भी धुन्धली नहीं पडती है ! कुछ ऐसा ही प्रतित हुआ मुझे उस दिन !
किसी परियोजना (Project) हेतु मै गया था हैदराबाद , अपने भैया के पास !
उस शाम भैया कार्यालय से जल्दी ही वापस आ गये थे ! घर मे आते ही भैया ने मुझसे कहा - " फटाफट तैयार हो जाओ, हमे बाहर जाना है ! " इतना सुनते ही मै प्रसन्न हो गया ! किसी अभियन्ता (Engineer) को अगर घुमने या समय व्यतित करने क़ा जरिया बता दो ,फिर तो तुम देख सकते हो असिम प्रसन्नता उसके चेहरे पर, जो चमक परीक्षा के बाद विद्यार्थी के चेहरे पे होती है !
मै भैया के साथ बाहर आ गया तो भैया रास्ते मे एक जलेबी कि दुकान के सामने ठिठक गये ! बहुत भीड थी वहां , जैसे वर्षा हो रही हो , और एक ही छाता के निचे दस खडे हों ! मैने दुकानदार को देखने का असफल प्रयास किया और फिर इधर उधर नजरें दौडने लगा !
मैने देखा सामने दुर सडक पर , मजदूर सा प्रतित होता एक व्यक्ति हमारी ओर ही बढता चला आ रहा था ! उसके चलने के अन्दाज से ही पता चल रहा था कि वह अभी अभी काम करके लौटा है और बहुत थका हुआ है ! सडक के दुसरी ओर लगे नल के किनारे वह रु्का और अपनी पगडी को अपने कमर पे बान्ध , कहने को तो उसने हाथ पैर ही धोये परन्तु मुझे तो वो नहाने से थोडा ही कम लगा ! फिर उसने अपने पगडी वाले कपडे से , जो की तौलिया प्रतीत हो रहा था , से अपने चेहरे को पोछते हुये से हमारी ओर आने लगा !
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