Friday, December 4, 2015

दादी आपसे कुछ कहना था !!



कुछ भली बिसरी बातें हैं,
अनकहे चले जो आते हैं,
रुकना तो जैसे आता नहीं,
बढ्ते, बढ्ते हि जातें हैं,
दिल को तिखा दर्द दिया,
आँसु भी नहीं रुक पाते हैं,
ऐसा तो कुछ सोचा भी ना था ,
क्या अभी ही ये सब सहना था?

दादी आपसे कुछ कहना था !!
दादी आपसे कुछ कहना था !!

कुछ मन मे बडी दुविधायें थी ,
बचपन की उन रातों मे, जो कहानियां आप सुनाती थी,
एक राजा था, एक रानी थी ,
एक छोटी नन्ही प्यारी सी ,परी भी चली आती थी!
चुडैल भी उसमे रहती थी ,जो बच्चो को ही खाती थी,
उन मिठे प्यारे सपनो मे ,आप ही मुझे सुलाती थी,
भुला नहीं अब भी मै उनको ,लोरी आप जो गाती थी,
कुछ बातों मे सन्देह मुझे था ,जो मुझे अभी समझना था,

दादी आपसे कुछ कहना था !!
दादी आपसे कुछ कहना था !!



झुर्रीयों से भरा  वो चेहरा ,बडा ही अच्छा लगता था,
चान्दी वाला वो बाल आपका ,आप पर ही जँचता था,
जब लाठी लेकर चलती थी, मै भी तो आगे मटकता था,
"मेरी दादी सबसे अच्छी" यही तो मै सबसे कहता था,
फिर अपने लिये ना ही सही, मेरे लिये तो लडना था,



दादी आपसे कुछ कहना था !!
दादी आपसे कुछ कहना था !!

Saturday, April 4, 2015

जलेबी -2


हमारी ओर आने का मतलब , वो जलेबी के दुकान के ओर आ रहा था ! अब उसका चेहरा साफ नजर आ रहा था ! देखने से तो उसकी उम्र 40 के आस पास ही लग रही थी! उसके चेहरे और माथे कि सिलवटें उसे ,
उसकी उम्र से ज्यादा बता रही थी परन्तु उसका हस्ट पुस्ट शरीर इस बात को पुरी तरह नकारता हुआ प्रतीत हुआ ! उसके चेहरे की खुशी ये बता रही थी कि शायद आज ही उसे तन्ख्वाह मिली थी !
उसने दुकनदार से जलेबी के भाव पु्छे ! शायद दुकानदार अन्य ग्राहकों मे कुछ ज्यादा ही व्यस्त था या उसे उस मजदुर मे कोई दिलचस्पी नहीं थी ! उसके बार बार पुछने पर भी जब दुकनदार ने उसे कोई जवाब नहीं दिया तो मैने उसे जलेबी का भाव बता दिया ! वो थोडा सहमा मुझे देखकर, फिर उसके चेहरे पर मेरे लिये कृतज्ञता का भाव था , जो मै जलेबी खाने मे व्यस्त होने के बावजुद उसके चेहरे पर साफ साफ  देख सकता था !
फिर वो कोने मे ख़डा होकर अपने कुर्ते से कुछ रुपये निकाल कर गिनने लगा ! शायद वो उसे कम लगे या वास्त्विकता को जाचंने के लिये उसने रुपयों को दुबारा गिना !फिर उसमे से कुछ रुपयों को उसने अपने कुर्ते मे वापस रखा और कुछ अपने हाथों कि मुठीयों मे!
मुठीयों मे रुपयों कि उस भिचन को देखकर मुझे उस दिन उन चन्द रुपयों कि कीमत पता चली और समाज की इस असमानता , वर्ग-भेद , और अत्यन्त विचलित , परन्तु एक वास्त्विकता का अहसास हुआ !
फिर अचानक अपने कन्धे पर मैने भैईया के हाथों को महसुस किया ! उन्होने वापस चलने का इशारा किया ! मै भैइया के साथ उस सडक , पर जो की असीमित लम्बाई तक विस्त्रित थी ! फिर पि्छे मुडकर उस व्यक्ति को देखा मैने , जो की जलेबी खाने का इन्तजार कर रहा था पर शायद नहीं , उसे इन्तजार जलेबी का नहीं था , वो तो अपनी किस्मत का इन्तजार कर रहा था!

आज बस इतना ही .......जल्दी ही वापस मिलेंगे नयी सोच के साथ !!तब तक के लिये ख़ुश रहिये,मस्त रहिये !!

Thursday, March 19, 2015


जलेबी -1

हैदराबाद की वो शाम आज भी मुझे याद है !कुछ यादें,  समय के इस बडे तुफान मे भी धुन्धली नहीं पडती है ! कुछ ऐसा ही प्रतित हुआ मुझे उस दिन !

किसी परियोजना (Project)  हेतु मै गया था हैदराबाद , अपने भैया के पास !

उस शाम भैया कार्यालय से जल्दी ही वापस आ गये थे ! घर मे आते ही भैया ने मुझसे कहा - " फटाफट तैयार हो जाओ, हमे बाहर जाना है ! "  इतना सुनते ही मै प्रसन्न हो गया ! किसी अभियन्ता (Engineer) को अगर घुमने या समय व्यतित करने क़ा जरिया बता दो ,फिर तो तुम देख सकते हो असिम प्रसन्नता उसके चेहरे पर, जो चमक परीक्षा के बाद विद्यार्थी के चेहरे पे होती है !

मै भैया के साथ बाहर आ गया तो भैया रास्ते मे एक जलेबी कि दुकान के सामने ठिठक गये ! बहुत भीड थी वहां , जैसे वर्षा हो रही हो , और एक ही छाता के निचे दस खडे हों ! मैने दुकानदार को देखने का असफल प्रयास किया और फिर इधर उधर नजरें दौडने लगा !

मैने देखा सामने दुर सडक पर , मजदूर सा प्रतित होता एक व्यक्ति हमारी ओर ही बढता चला आ रहा था ! उसके चलने के अन्दाज से ही पता चल रहा था कि वह अभी अभी काम करके लौटा है और बहुत थका हुआ  है ! सडक के दुसरी ओर लगे नल के किनारे वह रु्का और अपनी पगडी को अपने कमर पे बान्ध , कहने को तो उसने हाथ पैर ही धोये परन्तु मुझे तो वो नहाने से थोडा ही कम लगा ! फिर उसने अपने पगडी वाले कपडे से , जो की तौलिया प्रतीत हो रहा था , से अपने चेहरे को पोछते हुये से हमारी ओर आने लगा !

Sunday, March 8, 2015