Monday, October 7, 2013


वो छोटी लडकी-4

परन्तु वो छोटी लडकी , वो.........वहाँ छत पर नहीं थी ! मै घन्टो इन्त्जार करता रहा उसका , पर उसे नहीं आना था ,और वो नहीं आई ! मैने व्याकुल होकर माँ

से पुछा उस लडकी के बारे में ! माँ ने बताया की " वो छोटी लडकी अपने बुआ के घर चली गई है ! उसके बुआ कि तबियत ठिक नहीं रहती है और उन्हे घर के

काम करने मे परेशानी होती है ! वो छोटी लडकी अब वहीं रहेगी और अब तो वो बेचारी विद्यालय भी नहीं जाती ! "
पता नहीं क्युं मुझे अचानक बहुत गुस्सा आने लगा और मै अपने आपको बहुत असहाय महसुस करने लगा !

क्या समाज इस २१वीं सदी मे भी उन पुरानी दकियानुसी बुराईयों से बाहर नहीं निकल पाया है ?
क्या लोग अब भी लडकी को समाज का बोझ और एक घरेलु औरत समझते हैं जो बस घर के अन्दर हि
ठीक है ? क्या समाज अब भी लडकियों के महत्वाकांक्षा और आत्म्विश्वास से डरता हैं ! फिर मै सोचता हुँ क्या वाकई भारत तरक्की कर रहा है ????

ये घटना मुझे जीवनपर्यन्त याद रहेगी ! कुछ घटनायें होती है मनु्ष्य के जीवन मे जो उसे याद रहती है और उसे एहसास दिलातीं कि कितनी कमियाँ है अभी हमारे जीवन रुपी बगिया मे जिसे अभी हमे प्रारम्भ से सिंचना हैं वो छोटी लडकी मुझे मेरे अन्दर कि किसी कमी कि याद दिलाती रहेगी हमेशा ही ! ये कमी दुर होगी , जरुर दुर होगी और शायद मै कुछ कर सकु अपने उस अन्दर कि कमी को दुर करनी के लिये !!

अभी के लिये विदा लेता हुँ , फिर मिलेगें अपनी नई भावनाओं के साथ, अपने नये शब्दो के साथ और नई उम्मीदों के साथ !!

Tuesday, October 1, 2013

 
वो छोटी लडकी-3

तब माँ से उस लडकी के बारे मे पता चला ! उसके पिता पेशे से धोबी थे और शायद विधाता भी यही चाहते थे उसके पिता से ! शायद इसलिये असमय ही उसके पिता के दोनो पैर छिन लिये ! उसकी माँ एक घरेलु महिला थी , जो पति के कामों मे हाथ बटातीं थी ! पाँच बहनों मे सबसे बडी थी वो और कोई भाई न था उसका ! माँ ने बताया की वो सरकारी विद्यालय मे जाती है और घर आते ही अपने माँ बाप के कामों मे हाथ बटाती थी !
जब तक मैने वहाँ अपनी छुट्टीयाँ व्यतीत की, उसे रोज उसी छत पर खेलता हुआ देखता रहता ! कभी वो अकेले ही छत पर इधर से उधर दौडती रहती तो कभी बहनों के साथ खेलती रहती ! हमारे प्रान्गण मे बन्धे गाय को तो रोटी खिलाना वो कभी नहीं भुलती थी ! नित्य अपने माँ के हाथों मार खाना और फिर सब भुला कर अपने खेल मे मगन हो जाना उसकी आदतों मे शामील था शायद ! और ऐसे हि मेरी छुट्टियाँ कब समाप्त हो गयी , मुझे पता ही नहीं चला !
समय ने बडी तेजी से करवट बदली ! मै एक साल बाद फिर छुट्टियाँ बिताने घर आ गया ! परन्तु वो छोटी लडकी , वो.........वहाँ छत पर नहीं थी !

फिर मिलतें है अपने अगले और अंतीम भाग के साथ..........!!